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Friday 1 May 2020

मौर्य वंश : शासन प्रबन्ध ( भाग -1)

मौर्य शासन व्यवस्था चार भागों में बांटा जा सकता है ।
1. केंद्रीय शासन
2. प्रांतीय शासन
3. नगर शासन
4. ग्राम शासन
                           केंद्रीय शासन
सम्राट: सम्राट सत्ता का केंद्र था । वह  सबसे बड़ा सेनापति, प्रधान न्यायाधीश, कानूनों का निर्माता, तथा धर्मप्रवर्तक था।  कौटिल्य ने राज्य के सात अंग - सम्राट, अमात्य, जनपद, दूर्ग , कोष , सेना और मित्र बताए है ।
*   मंत्रीपरिषद : इसमें 12 से 20 तक मंत्री होते थे । प्रत्येक मंत्री को 12000 पन वार्षिक वेतन मिलता था ।
केंद्रीय अधिकारी तन्त्र : शासन की सुविधा हेतु केंद्रीय शासन अनेक विभागों में बंटा था । प्रत्येक विभाग को  "तीर्थ " कहा जाता था । प्रत्येक तीर्थ (विभाग)  का अध्यक्ष अमात्य कहलाता था । अर्थशास्त्र में कुल 18 तीर्थों का उल्लेख है । जो इस प्रकार है -
1. मंत्री व पुरोहित
2. समाहर्ता- राजस्व विभाग
3. सन्निधाता- राजकीय कोष संरक्षक
4. सेनापति- युद्व विभाग का मंत्री
5. युवराज- राजा का उत्तराधिकारी
6. प्रदेष्टा -न्यायाधीश (फौजदारी)
7. नायक - सेना का मुख्य संचालक
8. करमांटिक - उद्योगों का प्रभारी
9. व्यावहरिक- न्यायधीश( दीवानी)
10. मंत्रीपरिषदाध्यक्ष- मंत्रीपरिषद का अध्यक्ष
11. दण्डपाल - पुलिस मंत्री
12. अंतपाल - सीमा मंत्री
13. दुर्गपाल-  देश के भीतर दुर्गों का प्रबन्धक
14. नागरक- नगर का प्रमुख अधिकारी
15. प्रशस्ता - राजकीय आज्ञाओं का प्रभारी
16. दौवारिक - राजमहलों का निरीक्षक
17. आंतवर्षिक - सम्राट के अंगरक्षक प्रभारी
18. आटविक - वन विभाग अधिकारी
* केंद्रीय प्रशासन में प्रत्येक विभाग का अधीक्षक होता था। चाणक्य ने 32 विभागों का उल्लेख किया है ।
1. पण्याध्यक्ष- वाणिज्य का अध्यक्ष
2. गणिकाध्यक्ष- वेश्याओं का निरीक्षक
3. सीताध्यक्ष - कृषि विभाग का अध्यक्ष
4. आकराध्यक्ष- खानों का अध्यक्ष
5. कृपयाध्यक्ष - वन सम्पदा अध्यक्ष
6. शुल्कअध्यक्ष - व्यापारिक करों का संग्राहक
7. पौतवाध्यक्ष - तौल एवं माप प्रभारी
8. सूत्राध्यक्ष - वस्त्र उधोग प्रधान
9. लोहाध्यक्ष - धातु विभाग अध्यक्ष
10. नवाध्यक्ष - जहाजरानी प्रधान         इत्यादि
      इन अध्यक्षों को 1000 पण वार्षिक वेतन मिलता था ।
प्रांतीय शासन :
अशोक के अभिलेख में 5 प्रांतो का उल्लेख मिलता है ।
1. उदीच्य ( उत्तरापथ) - तक्षशिला (राजधानी)
2. अवन्ति - उज्जैन ( राजधानी )
3. कलिंग - तोसली (राजधानी)
4. दक्षिणापथ- सुवर्णगिरि (राजधानी)
5. प्राच्य - पाटलीपुत्रा ( राजधानी )
प्रांतों के राज्यपाल प्रायः कुमार कहलाते थे
*   अर्थशास्त्र के अनुसार राज्यपाल को 12000 पण वार्षिक वेतन मिलता था ।
* प्रांत मण्डल में विभक्त थे जिसका प्रधान "प्रदेष्टा " नामक व्यक्ति होता था ।
* मण्डल जिलों में विभक्त था जिसे " विषय" कहा जाता था और उसके प्रधान "विषयपति " ।
*  विषय  के नीचे "स्थानीय"  होता था जिसमें 800 ग्राम थे। इसके नीचे " द्रोणमुख" जिसमें 400 ग्राम शामिल था। इसके नीचे "खार्वटिक" था जिसमें 200 ग्राम अर्थात 20 संग्रहन होते थे । प्रत्येक संग्रहन में  10 ग्राम शामिल थे ।
संग्रहन का प्रधान " गोप " कहा जाता था ।
मेगास्थनीज जिले के अधिकारियों को।       " एग्रोनोमोई" कहता है ।
नगर प्रशासन :
मेगास्थनीज के अनुसार नगर का शासन 30 सदस्यों की एक परिषद थी जो 6 समितियों में विभक्त था ।प्रत्येक  समिति में 5-5 सदस्य होते थे ।
1. शिल्पकला समिति
2. वैदेशिक समिति
3. जनगणना समिति
4. वाणिज्य व्यवसाय समिति
5. वस्तु निरीक्षक समिति
6. कर समिति
मेगास्थनीज  " नगर " के पदाधिकारियों को " एस्टिनोमोई " कहता है ।
ग्राम शासन :
*  ग्राम प्रशासन की सबसे  छोटी इकाई  थी और ग्राम का अध्यक्ष  "ग्रामीक " / ग्रामिणी " कहलाता था ।
मौर्य वंश-322 BC-185 BC
मौर्य वंश : शासन प्रबन्ध ( भाग -3)
मौर्य वंश : शासन प्रबन्ध ( भाग -2)
मौर्य वंश : शासन प्रबन्ध ( भाग -1)
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